आज अनंत चतुर्दशी मुहूर्त पर आपके संपत्ती को अनंत काल तक बढाते रहने की शुभकामनाये मै देता हूँ.....!!!
अंनंत चतुर्दशी का अपने आप मे एक निराला महत्व चातुर्मास मे है, हिंदू धर्म की मान्यताओ के अनुसार त भगवान श्री विष्णू एवम माता महालक्ष्मी जी के प्रसन्नता प्राप्त करने का एकमात्र व्रत है.. जो संपत्ती निर्मिती एवम् अनंत काल तक,अनंत पीढियो तक संपत्ती बनाने और संभालने के लिये किया जानेवाला व्रत है.. इस व्रत मे भगवान श्री विष्णू एवम माता महालक्ष्मी के पूजन के बाद एक धागा कलाई बांधा जाता है और नयी संपत्ती बनाने का संकल्प लिया जाता है.. और हरसाल यह परंपरा दोहराई जाती है...!
खैर यह हुई धार्मिक मान्यताओ की बात. पर कभी हमने सोचा है की , वास्तव मे हम संपत्ती बनाने के लिये कितना स्ट्रगल करते है... हम देखते ही रहते है की पैसा कमाने के लिये कितने कष्ट उठाने पडते है,.. ओर कमाया हुवा पैसा संपत्ती मे रूपांतरण (कनवर्ट) करने के लिये कितना प्रयास करना पडता है.. ओर शायद कमसे कमदो पीढीयो मे ये काम पूरा होता है.....और बाद मे गारंटी नही की हमारी स्थावर अचल संपत्ती अगले कुछ पिढीयो तक टिकी रहेगी भी या नही.??!!! बडा आश्चर्यजनक सवाल है ये.. यहा अगर हम गौर से सोचे तो पता चलता है की हमारी आर्थिक साक्षरता के अभाव के कारण ही यह समस्या पैदा हुई है..और यही समस्या हमारी गरीबी का कारण बनी है. हम कुछ परंपराओ के मानसिक गुलाम बन गये है. हम शायद शास्त्रो की बातो मे केवल उलझ कर रह गये है, उसपर टिका-टीपण्णी बहोत तोद पर पढे हुये छोटे टुकडो को ही सबसे बडा शास्त्र समझ लेते है, जब की पूरे इंटरनेटपर गूगल यू ट्यूब और सारा मिला कर देखे तो पूरे विश्व का 3% ज्ञान ही उपलब्ध है....और हमारा उद्दैश्य है शास्त्रो को समझाना , शास्त्र के अपने इंटरेस्ट वाले हिस्सो को हम तुरंत ही पढ लेते है. जब की हमारे जरूरत वाले ज्ञान को हम ही थोडा कोने मे रख देते है, हमे ही पता नही की हाम शास्त्रो की बाते करते है तो शास्त्र का ज्ञान पर्याप्त रूप मे छोडो पर बताने लायक भी है क्या...हम जब स्वयं से सवाल पूछते है तो क्या हम सही जवाब दे पाते है,,, यदि हाँ ...तो बताये की कितने शास्त्र है...क्या हमे नीती शास्त्र ,समाज शास्त्र,रसायन शास्त्र भौतिक शास्त्र, जैव शास्त्र, राज्यशास्त्र पता है. कही हम अर्थ शास्त्र को भूल तो नही गये.....!!!
अर्थशास्त्र:- जीवन मे वरदान
अर्थशास्त्र तो एक भारतीय संस्कृतीका एक अहम् हिस्सा रहा है.. और दर असल हमे यही सिखाया नही जाता....अंनत चतुर्दशी पर विष्णुपुराण की बहोतसी कथाये सुनाई जाती है , पढी जाती है.. शास्त्रका मतलब मानवी जीवन मे किये जाने वाले क्रमबद्ध कार्यकलाप के ज्ञान को शास्त्र नाम से संबोधित किया गया है....और महालक्ष्मी धन संबधित देवता होने के कारण मानव जीवन मे अर्थव्यवस्था का क्रमबद्ध परिचालन करती है उस के लिये कुबेर ,वरूण आदि देवता खजाना (मैनेजमेंट )संभालते है. तो दुसरी ओर गणेश जी, माता सरस्वती, पैसो का हिसाब किताब रखनेवाली विद्या मतलब शास्त्र की जानकार देवता माना गया है और यही पर से हमे स्वर्ण ,रत्न और संपत्ती की जानकारी मिलती रहती है. और यहा से उसका दैनंदिन जीवन मे हिसाब किताब रखने की जरुरी शिक्षा भी मिलती है.
और इसी अर्थ शास्त्र राज्य शास्त्र को पढने हेतु बहोतसे आश्रम बनाये गये जो नामी गिरामी ऋषीमुनीयो के थे.. सुबह योगशास्त्र से लेकर रात्री के कामशास्त्र तक वाली सभी विद्याये धर्म , अर्थ,काम, मोक्ष इन चतुर्विध पुरुषार्थ के रूप मे पढाकर जीवनज्ञापन करनेकी शिक्षा दी जाती थी,...
और सबसे मजेकी बात यही है की यह विद्या आज भी जीवीत है... और जादा प्रभावी,प्रगल्भ बन गई है, और चक्रवर्ती राजा विक्रमादित्य के भाई और नवनाथो मे से एक नाथ भर्तृहरीनाथ..जो पहले उज्जयिनि के राजा भी थे... नाथपंथीय दीक्षा के बाद उन्होने भर्तृहरि नीतिशतक नाम से ग्रंथधृ लिखा जो आज भी उपलब्ध है.. उसमे लिखा है.... सर्व गुणानाम् कांचनम् आश्रयेत || मतलब सारे गुणो को सोना ही आश्रय देता है,,.. जो आज भी सत्य है. ऐसी बहोतसी बाते है और कुछ कृतीया भी इस शास्त्र मे है. हम धार्मिक आथार पर केवल परंपरा ही निभा रहे है. पर हमे अगली पीढीके लिये यह परंपरा विशुद्ध रूप मे अगली पिढी को हस्तांतरीत करनी है.
और इसिलिये साढेतीन मुहूर्त, गुरू और रविपुष्यामृत जैसे योगो पर सुवर्ण या संपत्ति खरीदी जाती थी तो कुछ मुहूर्त पर अपने पीढी को हस्तांतरीत करने की शिक्षा दी जाती है.भारत के सभी प्रदेशो मे अलग अलग त्योहार संपत्ती निर्मीती शास्त्र याने अर्थशास्त्र पर भी आधारित है.
हमारी नित्य संस्कार आवश्यकता खोजे
आज के समय मे हम बच्चो को पूरी शिक्षा देने का यथासंभंव प्रयास करते है, उनके मन के हिसाब से उनकी (वास्तव मे हमारे मन की अधूरी और छिपी रह गयीऐसी महत्वकांक्षा) शिक्षा देकर आगे उन्नत (यहा फिर से आर्थिकऔर बौद्धिक)बने और शिक्षा का उपयोग लेकर सम्मान कमाये,ये हमारी मनोकामना होती है.
पर वस्तुस्थिती है की हामने पीढीयो से अर्थ संस्कार करना ही भूला दिया है(ये सारे टेक्निक्स और प्रैक्टीकल इसी किताब के अलग अलग पाठ मे विस्तृत रूप से दिया है., और यही इसी किताब लिखने का स्वतंत्र उद्देश है) अब हमे जरूरत है बच्चो की आर्थिक ताकत को जगाना और बौद्धिकता का साथ देकर हमे उनको सजग अर्थविद्वान बनाकर संपत्ती के निर्माण करानेवाला इन्सान बनाना है.. जिन्हे सम्मान, यश, अधिकार, मिले और व्यवहार मे सकुशल व्यक्ती बनाये और आपके परिवार जनौ का भी सम्म्मान बढाये. अब अगले पाठ मे कुछ प्रैक्टीकल हमे करने है उसकी तैयारी आप कर लिजीये,
क्योंकी पैसो के बारे मे सही शिक्षा एवं उपदेश करने वालो को निरंतर सम्मान और संपत्ती मिलती है. और मै चाहता हू की हर एक किताब पढने वाला व्यक्ती अपने संपत्ती पाये...
(मेरी अगली किताब मनी शास्त्र...का एक अंश)
श्री हृदयेश रमेश पाटील.
फायनेन्शियल एज्युकेटर
9405672110